बाबर
जलालपुर, जौनपुर, स्थानीय थाना क्षेत्र के नेवादा गाँव निवासी अजय कुमार कन्नौजिया की सड़क हादसे में हुई मौत की खबर से पुरे गाँव में बुद्धवार को मातमी सन्नाटा पसरा रहा | मृतक की गरीबी पर पूरा गाँव आंसू बहा रहा था | उसकी हालत ऐसी थी की घटना के बाद जब पुलिस ने उसकी तलाशी लेनी शुरू की तो उसके पास न तो कोई मोबाइल फोन मिला और न तो उसके पास कोई कागज़ ही प्राप्त हुआ | उसके झोले में एक टिफिन था जिसमें सिर्फ 4 रोटी और 2 प्याज ही मिला जिससे उसकी पहचान न हो सकी | वाराणसी जनपद के फूलपुर में स्थित 20 -20 बिस्किट कंपनी में वह महज एक माह से नौकरी करने जारहा था | मंगलवार को उसकी तनख्वाह भी मिलनी थी | वह ख़ुशी -खुसी घर से निकला की बुद्धवार को वह अपनी पगार लेकर घर आयेगा लेकिन उसे क्या पता था की रास्ते में मौत उसका इन्तजार कर रही है | उसकी गरीबी को देख यह पता चलता है की आज भी गाँव में कुछ ऐसे लोग हैं जो रोटी और प्याज खाकर 12 घनटा मेहनत मजदूरुरी करने को विवस है और लोगों को डिजिटल इंडिया व बुलेट ट्रेन के सब्जबाग दिखाए जारहे है | काश की कोई जनप्रतिनिधि गाँव में ऐसे गरीबो की खोज लेने की कोशिश करता | सबसे आश्चर्य की बात तो यह थी उसकी मौत के बाद कंपनी का कोई भी अधिकारी न तो उसके घर पहुंचा न तो थाने पहुंचा और न तो उस गरीब परिवार की मदद के लिए सामने आया | इसबात से यह स्पष्ट होता है की गरीब आज भी गरीब है और अमीर आज भी अमीर है | चुनाव के समय सारे जनप्रतिनिधि वोट माँगने गरीबों के हर दरवाजे पर पहुँचते हैं लेकी चुनाव जीतने के बाद गरीबों की मौत के पर उनके परिजनों को तसल्ली देने के लिए उनके दरवाजे तक पहुँचने की किसी के पास समय नहीं रहता | इन गरीबों को सिर्फ शब्ज्बाग दिख कर उनके अमूल्य वोट तो हथिया लिए जाते है लेकिन चुनाव जीतने के बाद गरीबों के दिखाए गए सपने सिर्फ सपने बन कर रह जाते हैं | उनकी सारी तमन्नाये भूख, गरीबी , लाचारी , बेबसी ,और हाड तोड़ मेहनत के साथ -साथ प्याज और रोटी तक ही सिमट कर रह जाती है |
जलालपुर, जौनपुर, स्थानीय थाना क्षेत्र के नेवादा गाँव निवासी अजय कुमार कन्नौजिया की सड़क हादसे में हुई मौत की खबर से पुरे गाँव में बुद्धवार को मातमी सन्नाटा पसरा रहा | मृतक की गरीबी पर पूरा गाँव आंसू बहा रहा था | उसकी हालत ऐसी थी की घटना के बाद जब पुलिस ने उसकी तलाशी लेनी शुरू की तो उसके पास न तो कोई मोबाइल फोन मिला और न तो उसके पास कोई कागज़ ही प्राप्त हुआ | उसके झोले में एक टिफिन था जिसमें सिर्फ 4 रोटी और 2 प्याज ही मिला जिससे उसकी पहचान न हो सकी | वाराणसी जनपद के फूलपुर में स्थित 20 -20 बिस्किट कंपनी में वह महज एक माह से नौकरी करने जारहा था | मंगलवार को उसकी तनख्वाह भी मिलनी थी | वह ख़ुशी -खुसी घर से निकला की बुद्धवार को वह अपनी पगार लेकर घर आयेगा लेकिन उसे क्या पता था की रास्ते में मौत उसका इन्तजार कर रही है | उसकी गरीबी को देख यह पता चलता है की आज भी गाँव में कुछ ऐसे लोग हैं जो रोटी और प्याज खाकर 12 घनटा मेहनत मजदूरुरी करने को विवस है और लोगों को डिजिटल इंडिया व बुलेट ट्रेन के सब्जबाग दिखाए जारहे है | काश की कोई जनप्रतिनिधि गाँव में ऐसे गरीबो की खोज लेने की कोशिश करता | सबसे आश्चर्य की बात तो यह थी उसकी मौत के बाद कंपनी का कोई भी अधिकारी न तो उसके घर पहुंचा न तो थाने पहुंचा और न तो उस गरीब परिवार की मदद के लिए सामने आया | इसबात से यह स्पष्ट होता है की गरीब आज भी गरीब है और अमीर आज भी अमीर है | चुनाव के समय सारे जनप्रतिनिधि वोट माँगने गरीबों के हर दरवाजे पर पहुँचते हैं लेकी चुनाव जीतने के बाद गरीबों की मौत के पर उनके परिजनों को तसल्ली देने के लिए उनके दरवाजे तक पहुँचने की किसी के पास समय नहीं रहता | इन गरीबों को सिर्फ शब्ज्बाग दिख कर उनके अमूल्य वोट तो हथिया लिए जाते है लेकिन चुनाव जीतने के बाद गरीबों के दिखाए गए सपने सिर्फ सपने बन कर रह जाते हैं | उनकी सारी तमन्नाये भूख, गरीबी , लाचारी , बेबसी ,और हाड तोड़ मेहनत के साथ -साथ प्याज और रोटी तक ही सिमट कर रह जाती है |

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