श्रीमद्भागवत कथा का हुआ समापन, भण्डारा आज

जौनपुर। जो जितना ज्यादा प्रगति करता है उसके शत्रु भी उतने ही अधिक हो जाते हैं लेकिन समझदार व्यक्ति वह है जो प्रत्येक परिस्थिति में एक रस में रहने की आदत डाले। परमात्मा गोविन्द हमारे साथ हैं, इस बात का निष्चयात्मक अनुभव करें। उक्त बातें आचार्य डॉ. रजनीकान्त द्विवेदी ने श्रीमद्भागवत कथा समापन अवसर पर श्री जगन्नाथ धाम रासमण्डल में कही। उन्होंने कहा कि जिस हृदय में परमात्मा अविधा, अस्मिता, राग, द्वेष, अविनिवेष में शत्रु बैठे है, उस हृदय में परमात्मा का कभी वास होता ही नहीं। गोविन्द तो आत्मारुपी समुद्र में ही वास करते हैं। संसार में सबसे बड़ा धनी तो संत है जिसके पास भगवान के नाम का धन है, ज्ञान का धन है, वैराग्य का धन है, भक्ति का धन है। मीरा को जब विरक्ति हुई। मीरा में सर्वस्य छोड़ दिया, क्योंकि जब किसी को परमात्मा के नाम का रत्न मिल जाता है उसे फिर कोई चीज अच्छी नहीं लगती। नारायण जल्दी प्रसन्न तो नहीं होते लेकिन यदि प्रसन्न हो जाये तो जीव हजार गलती करे उसकी गलती पर ध्यान नहीं देते। जो वैभव, ऐष्वर्य नारायण दे सकते हैं वह तो कोई नहीं दे सकता क्योंकि नारायण लक्ष्मीपति हैं। आचार्य डा. द्विवेदी ने भागवत कथा के समापन पर कृष्ण पत्नियों व राधारानी के मिलन का बड़ा ही मार्मिक प्रसंग प्रस्तुत किया। शषांक सिंह रानू, दिनेष प्रकाष कपूर, संतोष गुप्ता, षिवषंकर साहू, नीरज श्रीवास्तव, आषीष यादव, राजेष गुप्ता, मुरारी गुप्ता, अनीष गुप्ता, मनोज मिश्रा, दीनदयाल गुप्ता, विभूति गुप्ता आदि लोगों ने व्यास पूजन किया तथा आज आयोजित कढ़ी भात भण्डारे में सम्मिलित होने का आमंत्रण दिया। इस अवसर पर ष्याम बाबू गुप्ता, विजय गुप्ता सपत्नीक, पं. सुमन षास्त्री, पं. मोहित, निषाकान्त द्विवेदी, डा. रजनीष श्रीवास्तव, डा. अजीत कपूर, अखिलेष पाण्डेय, तीर्थराज पाठक, संजय पाठक, गोपाल हरलालका आदि उपस्थित रहे।

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