jaunpur : सई के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा

 जौनपपुर। भगवान राम को पवित्र करने वाली सई नदी के अस्तित्व पर इन दिनों खतरा मंडराने लगा है। नदी से नाला का रूप ले रही सई की कल-कल करते निकलने वाली धारा सिसक रही है। यही नहीं कहीं-कहीं तो नदी इतना सूख गई है कि लोग बालू की रेत पर चलकर पैदल ही नदी पार हो जा रहे हैं। तटवर्ती गांव के बुजुर्ग सई की दयनीय स्थिति पर ोचता जता जता रहे हैं। केंद्र के साथ-साथ अब प्रदेश में भी भाजपा की सरकार बनने से लोगों में उम्मीद जगी है। विद्वानों की माने तो सई का ऐतिहासिक व धार्मिक महत्व कम नहीं है। वन से वापस आते समय भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण ने जिस सई में स्नान कर रावण से युद्ध में की गई गलतियों से अपने को पवित्र किया, यह ऐतिहासिक नदी अब अपनी पवित्रता, स्वच्छता ही नहीं अस्तित्व खोने के भी कगार पर है। हरदोई जनपद के भिजवान झील से निकली सई नदी वर्षों से लोगों के लिए जीवनदायिनी साबित होती है। लगभग सात सौ किलोमीटर दूरी तय करते हुए जलालपुर के राजघाट पर गोमती में मिल जाती है। नदी के पानी का उपयोग कभी लोग पीने के साथ-साथ खेतों की सिचाई में करते थे, लेकिन अब पानी दूषित होने के कारण लोग स्नान करने से भी कतराते हैं। हरदोई, उन्नाव, रायबरेली, प्रतापगढ़ व जिले की औद्योगिक इकाइयों का सारा कचरा व रसायन नालों के माध्यम से नदी में गिराया जा रहा है। फैक्ट्रियों का कचरा नदी के जल में जहर घोल रहा है। नदी का जल कत्थई, नीला व काला हो जाता है। जहरीले पदार्थों से जलीय जीवों का अस्तित्व भी खत्म हो रहा है। चिकित्सकों की मानें तो नदी में पल रही मछलियों के सेवन से लीवर, किडनी व कैंसर की बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है। नदी के किनारे बसे गांवों के शवों तथा पशुओं को इसमें बहाया जाता है। रही-सही कसर नदी में प्रतिबंधित जल जीवों का शिकार करने से पूरा कर दे रहे हैं। सई नदी के अस्तित्व को बचाने के लिए एक दशक पहले समाजसेवी डा. एसएन सुब्वाराव   ने नदी के तट पर जाकर आंदोलन चलाकर लोगों को जागरूक किया। लेकिन इनका यह आंदोलन फ्लाप हो गया। कई अन्य सामाजिक संगठन के लोग भी आवाज उठा चुके हैं लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ।

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