इस वर्ष भी गाजी मियाँ रह गए कुवारे 

बाबर 
जलालपुर ,जौनपुर - ढोल ,ताशे ,नगाड़े बजते रहे | आतिशबाजी होती रही | महिलाओं और पुरुषों का हुजूम पीछे - पीछे  चलता रहा | लोग मस्ती में थिरकते रहे | बरात सोभा यात्रा भी अपनी मंजिल तक पहुंची  लेकिन दुल्हन न मिलने की वजह से हरसाल की भाँती  इस साल भी गाजी मिया एक बार फिर  कुवारे ही रह गए  |                                                                                                

 गौर तलब हो की क्षेत्र के मझगवां कलां गाँव में रविवार को देर रात सौय्यद मसूद शाह गाजी की बरात शोभा निकाली गई | ढोल  ,ताशे , नगाड़े की धुनों पर थिरकते उनके चाहने वाले हिन्दू , मुस्लिम दोनों समुदाय के लोगों ने गाजी मियाँ की बरात में भाग लिया | बरात गाँव के पूर्वी छोर से निकल कर पुरे गाँव का भ्रमण करते हुए उनके मजार पर पहुंची और दरूदो फातेहा के बाद बिना दुल्हन के बाराती देर रात अपने घरों को वापस लौट आये | इस सम्बन्ध में बताया जाता है की सौय्यद मसूद शाह गाजी की मजार बहराइच में है जहां अकीदत मंदों का जन सौलाब उमड़ता है | जो लोग बहराइच  नहीं जा पाते वह जगह जगह उनकी बरात सोभा निकाल कर अपनी अकीदत का इजहार करते हैं | बताया यह भी जाता है की गाजी मिया को लोग बाले मिया , बालापीर , पीर वह्लीम ,गजना का दुल्हा के नाम से भी पुकारते हैं | इतना ही नहीं हिन्दू , मुस्लिम एकता का प्रतीक गाजी मियाँ की मजार को सबसे पहले जासी नामक एक यादव ने मिटटी को दूध में सान कर मजार का निर्माण किया था | तभी से बहराइच में स्थित यह मजार हिन्दू , मुस्लिम एकता का प्रतीक बन कर रह गया है | कहा यह भी जाता है की गाजी मियाँ को ग्वाल , अहीर जाती के लोगों के साथ - साथ गायों का भी संरक्षक माना जाता है | यही कारण है की आज भी उनके चाहने वालों में हिन्दू - मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग पूरी आस्था के साथ उन्हें मानते हैं और जगह - जगह बरात शोभा यात्रा निकालते है 

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